प्रिय दोस्तों, विद्या सफर में हमारा मित्र है, पत्नी घर पर मित्र है, औषधि रोगी व्यक्ति की मित्र है, और मरते वक्त तो पुण्य कर्म ही हमारा मित्र है । सहृदय धन्यवाद। - विवेका नन्द झा
प्यारे दोस्तों , शास्त्र -पुराण अथवा महापुरुषों के द्वारा दिया गया कथन वास्तव में हमलोगों केजीवन रूपी इस यात्रा को जैसे - एक भूला हुआ पथिक के भाँति जिसे अचानक अपनी मोक्ष रुपी लक्ष्य को देख कर मन प्रफुल्लित होता है। किन्तु य ह निर्भर है- आस्तिक होने पर। कटु- सत्य : - कु- मंत्रणा से राजा का , ...
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